जालंधर : पंजाब के एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरमालिनी धाम, श्री देवी तालाब मंदिर और मां अन्नपूर्णा मंदिर के साथ-साथ श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर भी शहर के इतिहास का अभिन्न अंग है। करीब 300 वर्ष पुराना यह मंदिर विश्व विख्यात भी है। कारण, चड्ढा बिरादरी के जठेरे और आनंद बिरादरी के साथ इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है।श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के साथ करीब पांच दशकों से जुड़े बब्बी चड्डा ने बताते हैं कि सोढल मेले के दौरान श्रद्धालु मन्नतें भी मांगते हैं। जिनके पूरी होने पर वह चड्ढा और आनंद बिरादरी की तरह ही व्रत रखने से लेकर खेत्री पूजा तक की रस्में पूरी करते हैं। मंदिर में आकर धार्मिक रस्में पूरी करने वालों में अब सभी धर्मों के लोग शामिल हैं।
यह श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर को लेकर प्रचलित कथा
अनंत चौदस पर लगता है मेला
श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के प्रधान बब्बी चड्डा ने कहा कि तालाब के चारों ओर पक्की सीढि़यां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच शेष नाग का स्वरूप है। भाद्रपद की अनंत चतुर्दशी को मंदिर में मेला लगता है। चड्ढा बिरादरी, आनंद बिरादरी और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसमें से सात रोट प्रसाद के रूप में वापस मिल जाते हैं। उस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती है लेकिन उसके पति व बच्चों को देना वर्जित है।