श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर का जाने इतिहास

by Sandeep Verma
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जालंधर : पंजाब के एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरमालिनी धाम, श्री देवी तालाब मंदिर और मां अन्नपूर्णा मंदिर के साथ-साथ श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर भी शहर के इतिहास का अभिन्न अंग है। करीब 300 वर्ष पुराना यह मंदिर विश्व विख्यात भी है। कारण, चड्ढा बिरादरी के जठेरे और आनंद बिरादरी के साथ इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है।श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के साथ करीब पांच दशकों से जुड़े बब्बी चड्डा ने बताते हैं कि सोढल मेले के दौरान श्रद्धालु मन्नतें भी मांगते हैं। जिनके पूरी होने पर वह चड्ढा और आनंद बिरादरी की तरह ही व्रत रखने से लेकर खेत्री पूजा तक की रस्में पूरी करते हैं। मंदिर में आकर धार्मिक रस्में पूरी करने वालों में अब सभी धर्मों के लोग शामिल हैं।

यह श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर को लेकर प्रचलित कथा

श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है। चड्ढा बिरादरी के प्रधान पार्षद विपिन चड्ढा बब्बी बताते हैं कि इतिहास के मुताबिक शुरुआत में यहां घना जंगल था। एक संत की कुटिया और छोटा सा तालाब था। चड्ढा परिवार की बहू भी संत की सेवक थी। एक दिन संत ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने संतान न होने को कारण बताया। संत ने कहा कि बेटी तेरे भाग्य में संतान सुख है ही नहीं। फिर भी भोले भंडारी पर विश्वास रखो। संत ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर अध्यात्म और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करे।संत के आग्रह पर भोले बाबा ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। जब बालक चार वर्ष का था तो एक दिन वह मां के साथ तालाब पर आया। वह वहां भूख से विचलित हो रहा था। मां से घर चलकर खाना बनाने को कहने लगा। जबकि, उनकी मां काम छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी। तब बालक ने कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी और आंखों से ओझल हो गया। मां रोने लगी, मां का रोना सुनकर बाबा सोढल नाग रूप में तालाब से बाहर आए और कहा कि जो भी मुझे पूजेगा उसकी सभी मन्नतें पूरी होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। तब से बाबा के प्रति श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास बरकरार है।

अनंत चौदस पर लगता है मेला

श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के प्रधान बब्बी चड्डा ने कहा  कि तालाब के चारों ओर पक्की सीढि़यां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच शेष नाग का स्वरूप है। भाद्रपद की अनंत चतुर्दशी को मंदिर में मेला लगता है। चड्ढा बिरादरी, आनंद बिरादरी और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसमें से सात रोट प्रसाद के रूप में वापस मिल जाते हैं। उस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती है लेकिन उसके पति व बच्चों को देना वर्जित है।

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