जालंधर:- मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नजदीक लम्मा पिंड चौक जालंधर में श्री शनिदेव महाराज जी के निमित्त श्रृंखलाबद्ध सप्ताहिक दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन मंदिर परिसर में किया गया।सर्व प्रथम ब्राह्मणों द्वारा मुख्य यजमान बावा खन्ना से सपरिवार पंचोपचार पूजन, षोढषोपचार पूजन, नवग्रह पूजन उपरांत हवन यज्ञ में आहुतियां डलवाई।सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी ने दिव्य हवन यज्ञ पर उपस्थित प्रभु भक्तों को मनुष्य के मन के बारे में ब्याख्यान करते हुए कहा कि यह सत्य है कि इस मन की गति की कोई तुलना नहीं कर सकता। कोई इसे पकड़ नहीं सकता, कोई इसे बस में नहीं कर सकता। पलक झपकते ही यह हजारों मील दूर पहुंच जाता है, कुछ ही क्षण में भ्रमण करके वापस भी आ जाता है। हमारे शरीर की सभी इंद्रियां थक जाती है, किंतु हमारे मन को एक क्षण भी आराम नहीं मिल पाता। यह अपनी कल्पना में मित्रों से तो मिलता ही है, किंतु अपने शत्रुओं से तो अकेले ही क्रोध में लाल पीला होकर लड़ता-झगड़ता है। जो इसे पसंद नहीं करता, वहां भी यह मन बिन बुलाए पहुंच जाता है। हमारे शरीर की सभी इंद्रियां मन के इशारों पर नाचती हैं। मन की और पानी की गति एक सी होती है। पानी का स्वभाव नीचे की ओर जाना है। यह मन भी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए नीचे से नीचे गिर सकता है। लेकिन हमें सदा रहना तो इसी मन के साथ है। इसे हम छोड़ भी नहीं सकते।नवजीत भारद्वाज जी ने कहा कि इस मन को समझा बुझाकर, प्यार-पुचकार कर हम इसे अपना अंतरंग साथी बना लें, तो यह मन हमारा सबसे विश्वासपात्र मित्र बन सकता है। थोड़े से प्रयास या अभ्यास की बात है। थोड़ी साधना, प्रार्थना, आराधना, भावभक्ति के द्वारा यह मन संभल सकता है। हमारा अपना मित्र बन सकता है, यह मन पावन पवित्र बन सकता है। सद्ग्रंथों के अध्ययन, चिंतन-मनन, भगवत-स्मरण से यह सही मार्ग पर जा सकता है। और तब यह भोग-विलास में भटकना बंद कर देता है।नवजीत भारद्वाज जी ने कहा कि श्रीमद् भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में मन को नियंत्रित करने के लिए बहुत कुछ कहा गया है। उसमें लिखा है कि जैसे कछुआ अपने अंग-प्रत्यंग को सिकोडक़र अपनी इंद्रियों को वश में करते हुए शत्रु से अपनी रक्षा करता है, ठीक इसी भांति ज्ञानी पुरुष भी विषय-वासनाओं, इच्छाओं से अपनी रक्षा करते हुए अपने मन को नियंत्रित करता है। कई बार जीवन में आने वाली सम-विषम परिस्थितियां भी मानव मन को बदल लेती हैं। चोट खाने पर, ठोकर खाने, घायल होने पर या अपमानित होने पर भी यह मन सहसा बदल जाता है। वृक्ष की जिस टहनी पर बैठे थे, उसी टहनी को काटकर मूर्ख कहलाने वाले कालिदास अपनी पत्नी विद्योत्मा की प्रताडऩा पाकर विद्वत समाज की संगति से महान कालिदास बन गए। इसी भांति तुलसीदास के मन को उनकी पत्नी द्वारा तीखे वचनों से छलनी होने के बाद तुलसीदास का मन बदला गया। तुलसीदास से गोस्वामी तुलसीदास बन गए।नवजीत भारद्वाज जी ने कहा कि यह चंचल मन बदल जाए, साधक बन जाए, मायामोह के इस संसार से पूर्णत: निर्लिप्त हो जाए, तो यही हमारा मन जीवन में महानतम कार्य कर सकता है। जिसने अपने मन पर विजय पाई है, वहीं व्यक्ति विश्व पर विजय प्राप्त कर सका है।नवजीत भारद्वाज ने 27 अक्टूबर को मंदिर परिसर में आयोजित होने वाले आलौकिक मासिक हवन-यज्ञ में सम्मिलित होने का निमंत्रण सभी मां बगलामुखी जी के भक्तों को दिया उन्होंने दीपावली पर्व पर मंदिर परिसर में आयोजित होने वाले हवन-यज्ञ के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।इस अवसर श्वेता भारद्वाज, राकेश प्रभाकर, समीर कपूर, अमरेंद्र कुमार शर्मा, नवदीप, उदय ,अजीत कुमार ,रोहित भाटिया, विनोद खन्ना,सुधीर, सुमीत,मनीष , गुप्ता,सुक्खा, अमनदीप , अवतार ,परमजीत ,ऐडवोकेट राज कुमार,गौरी केतन शर्मा,सौरभ , नरेश,अजय शर्मा,दीपक , किशोर,प्रदीप , प्रवीण,राजू, सोनू , मोनू ,गुलशन शर्मा,संजीव शर्मा,भाटिया,मुकेश, रजेश महाजन ,अमनदीप शर्मा, गुरप्रीत सिंह, विरेंद्र सिंह, अमन शर्मा, ऐडवोकेट शर्मा,वरुण, नितिश, भोला शर्मा,दीलीप, लवली, लक्की, रोहित , मोहित , विशाल , अश्विनी शर्मा , रवि भल्ला, भोला शर्मा, जगदीश, सुनील जग्गी, नवीन कुमार, निर्मल,अनिल,सागर,दीपक, प्रिंस कुमार भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।हवन-यज्ञ उपरांत विशाल लंगर भंडारे का आयोजन किया गया।