रुद्र सेना संगठन की तरफ से हर रोज शाम को होने वाले रुद्र अभिषेक के हुए पूरे 400 दिन : दयाल वर्मा

by Sandeep Verma
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जालंधर : सावन के पवित्र महीने में हर रोज होने वाले रुद्र सेना संगठन पंजाब द्वारा जालंधर के किशनपुरा श्मशानघाट स्थित भगवान शिव के मंदिर में 400वें रुद्राभिषेक का भव्य आयोजन किया गया। इस विशेष पूजा-अर्चना में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और भक्ति-भाव से भगवान शंकर के चरणों में अपनी श्रद्धा और आस्था अर्पित की। कार्यक्रम की अध्यक्षता रुद्र सेना संगठन पंजाब के संस्थापक बाबा दयाल वर्मा ने की, जिनके साथ मोहित शर्मा (चेयरमैन), प्रशांत शर्मा, विक्रांत शर्मा, समाजसेवक संदीप वर्मा (उपाध्यक्ष डिजिटल मीडिया), नव केसरी टाइम्स के संपादक राकेश भास्कर, पंडित कुंदन यादव, अनिल शर्मा (मैनेजर), किशनपुरा श्मशानघाट के बुग्गा पंडित, अजय जोगी, रघुराज शर्मा, संजीव बंसल, बिट्ट, दीपक अरोड़ा, पंकज अरोड़ा, मनी शर्मा, शिव जोर्शी, मोनू साई, और पंकज मेहता (चेयरमैन, फ्लाई उड़ान जिंदगी की ट्रस्ट) सहित कई अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों और श्रद्धालुओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।रुद्राभिषेक के इस पावन आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान शंकर के चरणों में अपने मनोकामनाओं को अर्पित करते हुए भक्ति और श्रद्धा का प्रदर्शन किया। इस आयोजन का महत्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं था, बल्कि इससे समाज में शांति, समृद्धि, और सौहार्द का संदेश भी प्रसारित हुआ। पंडित कुंदन यादव और अन्य विद्वानों के मार्गदर्शन में रुद्राभिषेक की विभिन्न प्रक्रियाएं विधिपूर्वक संपन्न की गईं, जिनमें मंत्रोच्चार, जलाभिषेक, और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का समावेश था। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने सभी उपस्थित श्रद्धालुओं के दिलों में एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभूति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया।समारोह के अंत में सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया गया और उन्हें भगवान शंकर की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।IMG 20240806 WA0960 इस भव्य आयोजन ने सावन के इस पावन महीने को और भी विशेष बना दिया, जिससे सभी उपस्थित लोगों को अद्वितीय आध्यात्मिक सुख और संतोष की प्राप्ति हुई। रुद्र सेना संगठन की इस पहल ने न केवल धार्मिक आस्था को सुदृढ़ किया, बल्कि समाज में सौहार्द और सामुदायिक भावना को भी मजबूत किया। यह आयोजन संगठन की धार्मिक और सामाजिक प्रतिबद्धता का एक जीवंत उदाहरण था, जिसने समाज में सद्भाव और धार्मिक आस्था को और अधिक गहरा किया।

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