भारत और रूस चुनावों में क्या अंतर है? जो भारत से पर्यवेक्षक बन गया राजेश बाघा का आखों देखा दृश्य

by Sandeep Verma
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रूस में चुनाव खत्म हो चुके हैं और इन चुनावों के दौरान व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर रूस के राष्ट्रपति बन गए हैं। रूस और चीन की चुनावी प्रक्रिया को तानाशाही का नाम दिया गया है और वर्तमान में कहा जाता है कि ये दोनों देश तानाशाह हैं और चुनाव केनाम पर केवल औपचारिकता होती है लेकिन मेरे विचार से ऐसा नहीं है। मैं पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी से कह सकता हूँ कि रूस भी एक लोकतंत्र है, और उसकी चुनावी प्रक्रिया भी बहुत पारदर्शी है।जनता के साथ कोई धक्का-मुक्की नहीं है और वोट के नाम पर कोई रैलियां निकालने या मुफ्त में सामान बांटने की कोई परंपरा नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि ये आदमी रूस का इतना समर्थन क्यों कर रहा है तो मैं आपको बता देना चाहता हूं कि ये सब मैं इसलिए जोर देकर कह रहा हूं क्योंकि मैं इस बार रूस की चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं। हां, यह फरवरी की बात है। जब एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा था। तभी मुझे फोन आया कि आपका नाम चुनावी पर्यवेक्षक के रूप में रूस भेजा जा रहा है।मैं हैरान था और सोचा कि ये क्या नया शगूफा मेरे सामने आ गया। क्योंकि मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था, मेरा नाम जाना या आना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। खैर, मैंने लंबी सांस ली। मैंने इतमिनान से बात सुनी और पूछा, तुम मजाक तो नहीं कर रहे हो। उन्होंने दो टूक कहा, नहीं सर, यह कोई मजाक नहीं बल्कि बेहद गंभीर मामला है क्योंकि रूस जैसे बड़े देश का चुनाव और यूक्रेन के साथ उसकी जंग के बाद भी उन चुनावों का पर्यवेक्षक बनना दुनिया भर में एक बड़ा मुद्दा है। जब मैंने अपने नाम का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए कुल 38 भारतीयों का चयन किया गया है, जिनमें से केवल 02 को भेजा जाना है। मैंने सोचा, चलो कोई नहीं, टॉप दो में मेरा नाम आ जायेगा। हम आराम से अपने काम में लगे रहे और पार्टी ने जो काम दिया, उसे करते रहे। एक दिन फिर फोन आया और मुझे बताया गया कि मुझे रूसी चुनाव के पर्यवेक्षक के रूप में पहले 2 भारतीयों में से चुना गया है और मुझे 13 से 20 मार्च तक रूस में चुनाव के लिए जाना है। मैं आश्चर्यचकित था और दिल में खुश और गर्वित भी था, क्योंकि एक भारतीय और विशेष रूप से एक पंजाबी के रूप में यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी।लेकिन सच कहूँ तो मुझे अब भी यकीन नहीं था और इसीलिए मैंने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया। टिकट मिलने के बाद मुझे वहां ठहरने की जगह की जानकारी भेजी गई और भगवान से प्रार्थना करने के बाद मैंने भी अपना बैग उठाया और दिल्ली के लिए निकल पड़ा। मैंने अब भी यह बात किसी के सामने नहीं खोली, केवल मेरी पत्नी और परिवार को ही पता था कि मैं किसी काम से रूस जा रहा हूँ। मैंने अपने परिवार को भी नहीं बताया कि काम क्या है, क्योंकि काम बड़ा था और काम की तुलना में मुझे लगता था कि मैं बहुत छोटा आदमी हूं। खैर, वह शुभ दिन आ गया और हम विमान में बैठ कर मास्को पहुंच गए। रूस पहुंचने पर हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया और होटल ले जाकर आराम करने के लिए कहा गया। साथ ही बताया गया कि सुबह आप चुनाव के मुद्दे पर बैठक में भाग लेने के लिए पहुंचेंगे। अब मुझे यकीन हो गया कि बात तो सच है यार, और बहुत बड़ी भी है। लेकिन वापिस जाकर सब बताना पड़ेगा,इसलिए अब काम पर ध्यान देना चाहिए। फिर मैंने अपना लैपटॉप खोला, जानकारी जुटानी शुरू की, भारत में अपने एक-दो पत्रकार मित्रों से फोन पर बात की और मैंने बिना कुछ खास कहे रूस के बारे में जानकारी जुटाई। फिर अगले दिन हमारी सेलेक्शन स्टाफ के साथ मीटिंग हुई। मैं यहां बताना चाहता हूं कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भारत ही नहीं दुनिया के 78 देशों से 200 से अधिक प्रतिनिधि आये थे, जिनमें पूर्व न्यायाधीश, वर्तमान सांसद भी शामिल थे। फिर मुझे बताया गया कि मुझे एस.सी आयोग के पूर्व अध्यक्ष होने के नाते यह सम्मान मिला है, क्योंकि उस समय मेरे काम के कारण एक मित्र ने मेरा नाम भेजा था।अब चुनाव स्टाफ के साथ मीटिंग होनी थी, तब हम 2 भारत से थे लेकिन बाकी एशियाई देशों के प्रतिनिधि भी आ गए थे और हमें एशियाई देशों का एक समूह बना दिया गया और यह गर्व की बात थी किमुझे था इसका अध्यक्ष भी बनाया गया।IMG 20240401 WA0998  हम मतदान कर्मियों के साथ बैठक के लिए पहुंचे। रूस में भाषा की कोई समस्या न हो, इसके लिए हमें दुभाषिए (अनुवादक) दिए गए और अफगानिस्तान से मेरी बहन, जिसे पंजाबी और हिंदी का काफी ज्ञान था, ने मेरी जिम्मेदारी संभाली। वो रूसी भाषा का अनुवाद करके मुझे बता रही थी और मैं हिंदी-पंजाबी में उनकी बातें सुन रहा था और जवाब दे रहा था। लेकिन चूंकि वो रूस की रहने वाली थी तो मैं उसकी बातों को गूगल के जरिए क्रॉस चेक भी कर रहा था।जब मैंने चुनाव प्रक्रिया को समझा तो पता चला कि रूस में तीन तरह से वोटिंग होती है। पहला ई.वी.एम. से, दूसरा बैलेट पेपर से और तीसरा मोबाइल फोन से। मोबाइल से वोट करने के लिए तीन दिन पहले लिखित आवेदन देना होता है। जिसके बाद मतदाता को मंजूरी मिल जाती है और वह मोबाइल से वोट डाल सकता है। IMG 20240401 WA0985रूस में वोटिंग 3 दिनों तक चलती है और इन तीन दिनों के दौरान मतदाता जब चाहे जाकर अपना वोट डाल सकता है। इससे तो यही लगता है कि हमारा भारतीय लोकतंत्र सचमुच महान है। बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर ने जिस सोच के साथ हमारा संविधान बनाया, उसके लिए उनका बहुत सम्मान किया जाता है। भारत में एक ही दिन में वोट पड़ते हैं और वो भी इतनी बड़ी संख्या में और अगर रूस को ऐसा करना है तो वहां वोट नहीं होने चाहिए।खैर, उनके पूरे सिस्टम में काफी पारदर्शिता थी, कोई धक्का-मुक्की नहीं, कोई चिल्लाहट नहीं, कोई पोस्टर नहीं, कोई बैनर नहीं, हर उम्मीदवार टीवी-मीडिया टूल्स के जरिए वोटरों तक अपनी बात पहुंचा रहा था और चुनाव अमन-अमन के साथ संपन्न हो गया। इस दौरान मुझे कई रूसी मीडिया संस्थानों में जाकर अपनी बात कहने का भी अवसर मिला। एक पत्रकार ने मुझसे पूछा कि क्या भारत और रूस में चुनाव एक जैसे होते हैं तो मेरा जवाब था नहीं, बिल्कुल नहीं, क्योंकि भारत में चुनाव एक त्योहार की तरह होते हैं। जैसे शादी में दादा-दादी सिथनी देते हैं, वैसे ही चुनाव में नेता भी एक-दूसरे को सिथनी की तरह भला-बुरा कहते हैं। जब तक ऑटो पर अनाउंसमेंट नहीं होता, हमारे आस-पास के गांवों में पोस्टर नहीं लगते, हमें संतुष्टि नहीं होती। हमारे यहां उपहार और शराब की संस्कृति भी है, जो रूस में देखने को नहीं मिलती, लेकिन हमारे चुनाव आयोग की सख्ती भी लोगों को पछताने पर मजबूर कर देती है, चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाती है। यहां तक कि जेल भी जाना पड़ सकता है, इसलिए चुनावी प्रक्रिया में भारत की रूस से कोई तुलना नहीं है। क्योंकि रूस में चुनाव आयोग बहुत कमजोर है। मैंने रूसी मीडिया को भी भारत आकर भारतीय चुनावों को देखने के लिए आमंत्रित किया ताकि वे जान सकें कि यह उत्सव हमारे देश के लोगों के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है।एक और दिलचस्प बात ये थी कि रूस के लोग भारतीय लोगों से बहुत प्यार करते हैं। रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव कम सराहनीय नहीं है। मुझे ऐसा रहा था कि जैसे मैं प्रधानमंत्री मोदी का बहुत करीबी दोस्त हूं। क्योंकि वहां लोग मुझे रोक रहे थे और मेरे साथ तस्वीरें ले रहे थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरे ब्लेजर के बैज पर भारत और रूस के झंडे थे, जो मुझे एक भारतीय के रूप में पहचानते थे और मुझे बहुत सम्मान दे रहे थे। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं। जिन्होंने मुझे भारत का प्रतिनिधि बना कर रूस की चुनाव प्रक्रिया का साक्षी बनने का अवसर दिया। अंत में मैं यही कहूंगा कि रूस की चुनाव प्रणाली और चुनाव प्रक्रिया को देखकर बहुत आनंद आया और मैं इस सम्मान का श्रेय ईश्वर को देता हूं। मैं आपके प्यार और मेरे नायकों का बहुत आभारी हूं जिन्होंने मुझे भेजने के लिए मेरे नाम को स्वीकृति दी। मॉस्को में आतंकवादी हमले वाली जगह की स्थिति जब हम मॉस्को में थे तो आतंकी हमले से 3 दिन पहले उसी हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में मैं भी शामिल हुआ था। हमें नहीं पता था कि इस हॉल में हमले का अलर्ट है। चुनाव के कारण सुरक्षा व्यवस्था काफी कड़ी थी, चुनाव के बाद जब यह हमला हुआ तो सुरक्षा व्यवस्था भले ही कम कर दी गई हो, लेकिन आप कुछ भी कहें, यह हमला बहुत ही घृणित और कायरतापूर्ण कृत्य था। यह सच है कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, उनका कोई देश नहीं होता। हत्या करना,आतंक फैलाना उनका मुख्य एजेंडा है और हम सभी को आतंकवाद और आतंकवादियों को एकजुट होकर जवाब देना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री पहले भी कह चुके हैं कि भारत हमेशा रूस के साथ खड़ा है और भारत का नागरिक होने के नाते मैं भी अपने देश के रुख के साथ खड़ा हूं, इसलिए मैं इस आतंकी हमले की कठोर निंदा करता हूं।

 

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