

जालंधर : दशहरा हर साल हमें यह संदेश देता है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंत में उसका विनाश निश्चित है। रावण का दहन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारी आत्मा को झकझोरने वाला प्रतीक है। लेकिन अफसोस, हममें से अधिकांश लोग इसे केवल एक त्योहार मानकर उत्सव में खो जाते है आप को बता दें कि असली रावण कहाँ है? क्या वह सचमुच सोने की लंका का राजा था, या फिर हमारे भीतर पल रहे विकारों का प्रतीक है? आज के समय में रावण हमारे भीतर कई रूपों में मौजूद है-अहंकार, क्रोध, लोभ, स्वार्थ, ईर्ष्या और असत्य के रूप में। हम हर साल मैदानों में जाकर पुतले को जलाते हैं मगर अगले ही दिन वही क्रोध, वही झूठ, वही लालच और वही स्वार्थ हमारे व्यवहार में जिंदा हो उठते हैं। इसका अर्थ साफ है – रावण बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। यही कारण है कि हम दशकों से रावण के पुतले जला रहे हैं, लेकिन बुराइयाँ मिटने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। इसलिए असली विजयादशमी तब होगी, जब हम केवल बाहर का पुतला नहीं जलाएँगे, बल्कि अपने भीतर के विकारों को भी जलाने का साहस करेंगे हम सभी को इस दशहरे पर हम सब संकल्प लें- पुतलों के साथ-साथ अपने भीतर का रावण भी जलाएँ और अच्छाई की ज्योति से अपने जीवन और समाज को रोशन करें
संदीप वर्मा द ट्रिडेंट न्यूज एडिटर










