उज्जैन : महाकालेश्वर मन्दिर स्थित नागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट वर्ष में एक बार चौबीस घंटे के लिये सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। 01 अगस्त सोमवार को रात्रि 12 बजे पट खुलेंगे। श्री पंचायती महानिवार्णी अखाड़ा के महंत द्वारा पूजन पश्चात रात्रि करीब 2 बजे आम भक्तों के लिये मन्दिर के पट दर्शन हेतु खुल जाएंगे। इस बार विशेष रूप से बनाए गए अस्थायी ब्रीज के माध्यम से श्रद्धालु दर्शन करेंगे। जुना महाकाल के पंडित पंकज ने बताया कि भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन का सिलसिला सतत मंगलवार रात्रि 12 बजे तक चलेगा। पूजा पश्चात एक वर्ष के लिए पुन: पट बंद कर दिए जाएंगे। इस दौरान एक लाख से अधिक भक्त भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करेंगे।
नागचंद्रेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
हिंदू धर्म में सदियों से नाग की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नाग को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर स्थित हैं। इन्हीं में से एक मंदिर नागचंद्रेश्वर का है,जो महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष शिखर पर स्थित है। मंदिर में 11 वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती, परिवार बैठे हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, माँ पार्वती, गणेश जी के साथ सप्तमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। साथ में दोनो के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित है। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। सर्प राज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर के पट बंद रहते है। नागपंचमी के अवसर पर माता श्रद्धा भक्त मण्डल व रुद्रसेना संगठन ने देशवासियों को नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं दी