हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां धूमावती की जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस साल धूमावती जयंती गुरुवार, 14 जून यानी आज है. धूमावती मां पार्वती का ही एक रूप हैं. मां धूमावती के एक हाथ में तलवार है. देवी के बाल बिखरे हुए हैं और इनका स्वरूप काफी रौद्र और भयानक है. मां धूमावती की पूजा से पापियों और शत्रुओं का नाश होता है. इनकी आराधना से व्यक्ति के जीवन से विपत्ति, रोग आदि के संकट दूर हो जाते हैं. लेकिन मां धूमावती की पूजा सुहागिन महिलाओं के लिए वर्जित है. आइए मां धूमावती की पूजन विधि और कथा बताते हैं.
मां धूमावती दसमहाविद्या में सातवीं विद्या है.
10 महाविद्या शिव की शक्तियां है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती ने अपने पिता के यहां हवन कुंड में अपनी इच्छा अपने आप को जलाकर भस्म कर दिया था. तब उनके शरीर से जो धुआं निकला था उसी धुंए से माँ धूमावती प्रकट हुई थी. अर्थात मां धूमावती धुंए के स्वरूप में माता सती का भौतिक रूप है. मां धूमावती को रोग शोक और दुख को नियंत्रित करने वाली महाविद्या माना जाता है. पद्म पुराण में बताया गया है की दुर्भाग्य की देवी धूमावती मां लक्ष्मी की बड़ी बहन है. परंतु इनका स्वरूप मां लक्ष्मी से बिल्कुल उल्टा है. शास्त्रों के अनुसार मां धूमावती पीपल के पेड़ में निवास करती हैं. मान्यताओं के अनुसार धूमावती को दरिद्रता, अलक्ष्मी और ज्येष्ठा के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पाप, आलस्य, गरीबी, दुख और कुरूपता पर माँ धूमावती का आधिपत्य रहता है.